Indic Today भारतीय ग्रंथों तथा पुराणों में देवी दुर्गा का वर्णन – भाग ८

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Manish Shrivastava

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पिछले अंकों में हम आपको मेधा ऋषि द्वारा महाकाली (पहला अध्याय), महालक्ष्मी महिषासुरमर्दिनी (दूसरे से चौथे अध्याय तक), तथा विभिन्न दैत्यों, राक्षसों, दानवों के मध्य युद्धों का वर्णन पढ़ा रहे थे। पिछले अंकों में आपने धूम्रलोचन, चंड-मुंड तथा रक्तबीज के बारे में भी पढ़ा होगा। इस अंक में हम आपको शुम्भ-निशुम्भ की कथा के बारे में बताने वाले हैं।

युद्ध में रक्तबीज तथा अन्य दैत्यों के संहार की सूचना प्राप्त होने पर शुम्भ तथा निशुम्भ के क्रोध की सीमा न रही। अंततः महापराक्रमी शुम्भ-निशुम्भ ने स्वयं युद्ध भूमि हेतु अपनी सेना के साथ प्रस्थान किया। शुम्भ-निशुम्भ ने मेघों की भांति बाणों की भयंकर वृष्टि करते हुए महादेवी के विरुद्ध घोर संग्राम छेड़ दिया।

दैत्यराजों द्वारा चलाए हुए बाणों को चंडिका ने अपने बाणों के समूह से नष्ट करते हुए अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करके उन दोनों दैत्यपतियों को चोटिल कर दिया। तभी अचानक निशुम्भ ने अपनी तलवार से देवी वाहन सिंहराज के मस्तक पर प्रहार किया। सिंहराज पर प्रहार होता देख देवी ने क्षुरप्र नामक बाण से निशुम्भ की तलवार तथा ढाल को छिन्न-भिन्न कर दिया।

ढाल तथा तलवार के नष्ट हो जाने पर असुर ने देवी पर शक्तिप्रहार किया तो देवी ने ने चक्र से उसके भी दो टुकड़े कर डाले। दानव ने देवी को मारने हेतु शूल उठाया तो देवी ने समीप आने पर उसे भी मुष्टि प्रहार से चूर कर डाला। असुरराज ने चंडी के ऊपर गदा का प्रहार करना चाहा, परंतु वह भी देवी के त्रिशूल से टकराकर भस्म हो गयी।

तदनंतर दैत्यराज निशुम्भ को कुल्हाड़ी हाथ में लेकर आते देख देवी ने बाण समूहों से उसे भी धराशायी कर डाला। अपने पराक्रमी भ्राता निशुम्भ के धराशायी हो जाने पर शुम्भ के क्रोध का अंत ना रहा तथा वह माँ अम्बिका का वध हेतु आगे आया।

रथ पर विराजमान उत्तम आयुधों से सुशोभित अपनी सभी आठ भुजाऒं से समूचे आकाश को ढंककर उसने रणभूमि में उपस्थित सभी को भयभीत कर डाला।

युद्ध स्थल पर शुम्भ को देख देवी ने शंखध्वनि की तथा धनुष की प्रत्यंचा खींचकर गर्जना करने लगीं।
देवी की ललकार सुन शुम्भ ने ज्वालाओं से युक्त अग्निमय पर्वत के समान अत्यंत भयानक शक्ति से देवी पर प्रहार किया जिसे देवी ने नष्ट कर दिया। अतिक्रोध में आ चंडिका ने अब शुम्भ पर अपने घातक शूल से आक्रमण किया जिसके आघात से मूर्च्छित हो वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। तभी निशुम्भ पुनः चेतना में आया और उसने अपने बाणों से देवी काली तथा सिंहराज को घायल कर दिया। देवी को घायल देख दैत्यराज ने सहस्त्र भुजाओं के चक्रप्रहार से चंडिका को आच्छादित कर दिया। घायल किन्तु कुपित भगवती दुर्गा ने अपने बाणों से उन चक्रों तथा बाणों को काट गिराया।

यह देख निशुम्भ अपनी सेना के साथ चंडिका का वध को व्याकुल हाथ में गदा ले बड़े वेग से देवी की ओर दौड़ता है। उसके समीप आते ही चंडी अपनी तीखी धारवाली तलवार से उसकी गदा को काटकर अपने हाथ में शूल ग्रहण करती हैं। कुछ ही क्षण पश्चात देवी चंडिका के शूलवेग द्वारा विदीर्ण होता हुआ काँप जाता है और देवी अविलम्ब खड्ग से निशुम्भ का मस्तक विच्छेद कर देती हैं।

तदनतर सिंहराज असुरों पर आक्रमण कर उनका भक्षण करने लगते हैं। उधर काली तथा शिवदूती भी अन्यान्य दैत्यों का भक्षण आरम्भ करती हैं। कौमारी की शक्ति द्वारा विदीर्ण हो, ब्रह्माणी के मंत्रयुक्त जल द्वारा निस्तेज हो, माहेश्वरी के त्रिशूल से छिन्न-भिन्न हो, वाराही के शस्त्रों के आघात से, वैष्णवी के चक्र द्वारा तथा ऐंद्री के हाथ से छूटे हुए वज्र से भी कितने ही दैत्य-महादैत्यों के प्राण पखेरू उड़ जाते हैं।

इस प्रकार श्रीमार्कडेयपुराण में, सावर्णिक मन्वंतर की कथा के अतर्गत, देवीमाहाम्य में, निशुम्भ-वध नामक, नवां अध्याय पूरा होता है। आगे आने वाले अंक में हम शुम्भ वध की चर्चा करने वाला हैं।
हमसे जुड़े रहने के लिए आपका आभार…

सन्दर्भ –


Image Credit: allabouthinduism.info

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